Saturday, June 19, 2010

उसकी यादो का पानी मेरी आखो में

न जाने यह क्या है समझ नहीं आता अज बड़े दिनों बाद उसकी यद् आ रही है और मेरी आखो में पानी ही पानी नज़र आ रहा है दुसरो के लिए शायद मेरी आखो में जो आसू है वो मजाक होगा लेकिन ऐसा लग रहा है की जिंदगी का वो कोन सा ऐसा दिन था जो काफी बेचैनी पैदा कर रहा है आज न जाने उसकी यादें वापस दिमाग में आ रही है उसकी आँख से एक भी आसू गिरता है तो मेरी आँख से भी गिरता है आज ऐसा लग रहा है वो काफी दुखी है तभी तो उसका दुःख मेरी आँखों में नज़र आ रहा है लेकिन में कितनी बेबस हु कितनी लाचार हूँ की वो मेरे पास होने के बावजूद भी उसके आसुओ का कारन नहीं जान सकती में इसे क्या कहू क्यों जब भी उससे बात करने का मन करता है तो कदम आगे की और बढ़ने की वज़ह पिच्छे की और क्यों हटते है जब भी उसकी यद् आती है तो मन करता है उसके पास जाओ और उससे जाके पूछु की उसे क्या दुःख है उसकी सारी परेशानी दूर कर दू लेकिन वो भी नहीं कर सकती मजबूर हु आज में इतनी बेबस महसूस कर रही हु की इतना कभी अपने आप को बेबस महसूस नहीं किया आज उसका दुःख नहीं बाट नहीं सकती उससे बात नहीं कर सकती उसके पास नहीं जा सकती उससे से कुछ कह नहीं सकती क्या करू समझ नहीं बस मन को यह कहकर तस्सली दे लेती हूँ की वो जहा भी हो ठीक हो उसकी हर चाहत भगवन पूरी करे उसे हर ख़ुशी मिले बस यही भगवन से दुआ कर सकती हूँ इसे किस्मत कहू या अपनी गलती कहू किस्मत में जो होता है वोही इंसान के साथ होती यह बाट बिलकुल सही है की किस्मत अपनी अपनी क्युकी इंसान किस्मत के सामने इतना मजबूर होता है की कुछ कर नहीं सकता उसके किस्मत न जाने क्या खेल खिलाती है पता नहीं किस्मत की वो कोण सी ढोर है जो किसी को दिखाई भी नहीं देती और अपना खेल खेल जाती है खेर क्या रखा है इन बातो में जो किस्मत को मंज़ूर वो ही अपने आपको मंज़ूर किस्मत को बहुत बार बदलना छह लेकिन नहीं बदल पाए उसके सामने भी हार गए अब सब कुछ किस्मत के हवाले ही छोड़ दिया जय हिंद

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