Friday, June 11, 2010

मेरे दुःख का सागर

कहने के लिए तोह मेरे दुःख की दास्ताँ बहुत बड़ी है लेकिन यह वो कहानी है जो हर इंसान की जिंदगी में घटती रहती है जी हा एक राजकुमार था एक राजकुमारी थी दोनों बहुत प्यार करते थे प्यार इतना पवित्र था की गंगा के पानी की तरह दोनों खूब बातें करते थे लेकिन मिलना उनकी जिंदगी में शामिल नहीं था क्युकी वो प्यार ही ऐसा था जिस दिन वो मिले वो उनकी जिंदगी का आखरी सफ़र था इसे चाहे जुदाई कहो या जिंदगी से अलग हो जाने के बराबर समझो दोनों नहीं जानते थे की प्यार क्या होता है जब पता चला तोह रस्ते अलग अलग हो गए थे जिसका असर जिंदगी पर ऐसे पड़ा की जिंदगी फीकी नज़र आने लगी मोहब्बत तोह हीर और राँझा ने भी की थी लेकिन कोण सी मोहब्बत है जो पास होके भी नहीं मिल पाए शायद यही भगवन की मर्ज़ी थी जो अज अपनी मौत से भी बदतर दिखाई देती है जिंदगी के वो लम्हे जो कभी हसीं थे आज पूरी जिंदगी गम में डूब गयी पता कब वो दिन आयेगा जब जिंदगी खुशीनुमा पालो की मोहताज होगी ऐसा लगता है की साडी खुशिया जिंदगी से रूठ गयी बस गमो का सहारा रह गया हमारी जिंदगी का क्या वो तोह कट ही जाएगी लेकिन भगवन से दुआ उन्हें जिंदगी की हर ख़ुशी मिले जिन्हें हम न पा सके वो हमेशा खुश रहे क्युकी हम वो है जो दुसरो की खुशियों के लिए जीते है दुसरो की खुशिया हमारे लिए ज्यादा मायने रखती है अपनी खुशियों से ज्यादा क्युकी इसी जिंदगी कहते है हमने तोह उनकी खुशियों के सहरे अपनी जिंदगी डोर बंद राखी थी जो टूट गयी लेकिन गम नहीं क्युकी वो खुश है

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