Saturday, June 12, 2010

जो खाए वो भी पछताए जो न खाए वो भी पछताए

कहने का तात्पर्य तो एक लड्डू से कम नहीं है जिसका स्वाद मीठा होता है उसी तरह जब किसी से मुलाकात होती है तो वो भी मीठी मीठी बात करके आगे बढ़ते चले जाते है जब भी शुरुआत इंसान अपनी जिंदगी की करता है तो वह भी परिस्थियों से भी झूज़ता हुआ आगे बढ़ता है और एक दिन वो दिन उसकी जिंदगी में आ ही जाता है जब उसे शादी का लड्डू खाना पढता है हर इंसान अपनी जिंदगी में खुश रहना चाहता है जीवन में बहुत कुछ करना चाहता है और समय समय पर अपने आप को साबित करना चाहता है की में कोण है लेकिन आज के समय में इंसान बदल गया है आज इंसान पैसो से प्यार करते है इंसान के लिए इंसान की जिंदगी से ज्यादा पैसा मायने रखता है इंसान का रूप जानवरों से बदतर होता जा रहा है इंसान की सोच आधुनिक युग में भी गन्दी होती जा रही है इसे या तोह प्रकर्ति की दें कह ले या इंसान की मज़बूरी कह लो इंसान जल्दी से हर बुरे कम करने के लिए टायर हो जाता है जिंदगी के मायने इंसान के लिए बदल जाते है आज के डोर में सही इंसान भी बदनाम हो रहा है चने के साथ घुन पिस रहा है पता नहीं इंसान क्या साबित करना चाहता है जय हिंद

No comments:

Post a Comment