Saturday, July 3, 2010

इंसानियत

मुझे लगता था की जैसे सब लिखते है ऐसे मुझे भी कुछ लिखना चाहिए इस पूरी कायनात में एक से एक शायर एक से एक कवि पैदा हुआ है जिनोहोने अपनी कलम के ज़रिये इस सभ्य समाज को एक नयी दिशा दी है यही कुछ सोचकर में भी कुछ लिखना चाहता था मगर लिख नहीं पाया विचारो का आदान प्रदान जब हुआ तब चार लाइन का जनम हुआ अपनी कलम से उकेरी हुई वही चार लाइन इस प्लेटफार्म पर दर्शा रहा हूँ

जाने कहा गुम हो रही
इंसानियत इंसान की
फैलती ही जा रही
हैवानियत इंसान की
वक़्त के आगोश में
कितने आये मिट गए
आज खोती जा रही
तहज़ीब इस इंसान की
मर मिटे जो हिंद पर
शान ऐ वतन के वास्ते
है मय्यसर अब नहीं
जिन्दादिली इंसान की

सशक्त आवाज दिल्ली

No comments:

Post a Comment